महेश की जटान में लसे सुगंग धार है | सुगंग की तरंग में छटा दिखे अपार है || ललाट में दिखात ज्वाल अग्नि की महान है | सुचन्द्र चुड में सदा बसे हमारे प्राण हैं || १ ||
सभी लोग जानते हैं कि सती ने अपने पिता
द्वारा शिव को यज्ञ में आमंत्रित न करने और उनका अपमान करने पर उसी
यज्ञशाला में आत्मदाह कर लिया था लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि इसकी
भूमिका बहुत पहले हीं लिखी जा चुकी थी.
श्रावण मास में शिव जी के मस्तक पर जल अर्पण करने की परंपरा चली आ रही है
पर बहुत से भक्तो को ये नहीं मालूम है की ऐसा क्यों किया जाता
है...समुद्रमंथन के दौरान निकले हलाहल विष को सृष्टि को
चैत्र मास से प्रारम्भ होने वाला श्रवण पांचवां महीना है, जो जुलाई-अगस्त माह में पड़ता है। इसे वर्षा ऋतु या पावस ऋतु भी कहते हैं। श्रवण मास भगवान शिव को विशेष प्रिय है। अत: इस मास में आशुतोष भगवान शंकर
शीश गंग अर्धांग पार्वती सदा विराजत कैलासी! नंदी भृंगी नृत्य करत है, गुणभक्त शिव की दासी!! सीतल मद्सुगंध पवन बहे बैठी हैं शिव अविनाशी! करत गान गन्धर्व सप्त सुर, राग - रागिनी सब गासी!!