ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
शिव को मृत्युंजय के रूप में समर्पित महान मंत्र ऋग्वेद में पाया जाता है |
इसे
मृत्यु पर विजय पाने वाला महा मृत्युंजय मंत्र कहा जाता है| इस मंत्र के
कई नाम और रूप हैं | इसे शिव के उग्र पहलू की ओर संकेत करते हुए रुद्र
मंत्र कहा जाता है; शिव के तीन आँखों की ओर इशारा करते हुए त्रयंबकम
मंत्र, और इसे कभी कभी मृत-संजीवनी मंत्र के रूप में जाना जाता है क्योंकि
यह कठोर तपस्या पूरी करने के बाद पुरातन ऋषि शुक्र को प्रदान की गई "जीवन
बहाल" करने वाली विद्या का एक घटक है |
ऋषि-मुनियों
ने महा मृत्युंजय मंत्र को वेद का ह्रदय कहा है | चिंतन और ध्यान के लिए
इस्तेमाल किए जाने वाले अनेक मंत्रों में गायत्री मंत्र के साथ इस मंत्र
का सर्वोच्च स्थान है |
महा मृत्युंजय मंत्र का अक्षरशः अर्थ
त्रयंबकम = त्रि-नेत्रों वाला (कर्मकारक)
यजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय
सुगंधिम= मीठी महक वाला, सुगंधित (कर्मकारक)
पुष्टि = एक सुपोषित स्थिति,फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता
वर्धनम
= वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में)
वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है, और स्वास्थ्य प्रदान
करता है, एक अच्छा माली
उर्वारुकम= ककड़ी (कर्मकारक)
इव= जैसे, इस तरह
बंधनान =
तना (लौकी का); ("तने से" पंचम विभक्ति - वास्तव में समाप्ति -द से अधिक
लंबी है जो संधि के माध्यम से न/अनुस्वार में परिवर्तित होती है)
मृत्युर = मृत्यु से
मुक्षिया = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें
मा= न
अमृतात= अमरता, मोक्ष