नागेश्वर ज्योतिर्लिग कथा
नागेश्वर ज्योतिर्लिग के संम्बन्ध में एक कथा प्रसिद्ध है. कथा के अनुसार एक धर्म कर्म में विश्वास करने वाला व्यापारी था. भगवान शिव में उसकी अनन्य भक्ति थी. व्यापारिक कार्यो में व्यस्त रहने के बाद भी वह जो समय बचता उसे आराधना, पूजन और ध्यान में लगाता था.
उसकी इस भक्ति से एक दारुक नाम का राक्षस नाराज हो गया. राक्षस प्रवृ्ति का होने के कारण उसे भगवान शिव जरा भी अच्छे नहीं लगते थे.
वह राक्षस सदा ही ऎसे अवसर की तलाश में रहता था, कि वह किस तरह व्यापारी की भक्ति में बाधा पहुंचा सकें. एक बार वह व्यापारी नौका से कहीं व्यापारिक कार्य से जा रहा था. उस राक्षस ने यह देख लिया, और उसने अवसर पाकर नौका पर आक्रमण कर दिया. और नौका के यात्रियों को राजधानी में ले जाकर कैद कर लिया.
कैद में भी व्यापारी नित्यक्रम से भगवान शिव की पूजा में लगा रहता था.
बंदी गृ्ह में भी व्यापारी के शिव पूजन का समाचार जब उस राक्षस तक पहुंचा तो उसे बहुत बुरा लगा. वह क्रोध भाव में व्यापारी के पास कारागार में पहुंचा. व्यापारी उस समय पूजा और ध्यान में मग्न था. राक्षस ने उसपर उसी मुद्रा में क्रोध करना प्रारम्भ कर दिया. राक्षस के क्रोध का कोई प्रभाव जब व्यापारी पर नहीं हुआ तो राक्षस ने अपने अनुचरों से कहा कि वे व्यापारी को मार डालें.
यह आदेश भी व्यापारी को विचलित न कर सकें. इस पर भी व्यापारी अपनी और अपने साथियों की मुक्ति के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करने लगा. उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव उसी कारागार में एक ज्योतिर्लिंग रुप में प्रकट हुए. और व्यापारी को पाशुपत- अस्त्र स्वयं की रक्षा करने के लिए दिया. इस अस्त्र से राक्षस दारूक तथा उसके अनुचरो का वध कर दिया. उसी समय से भगवान शिव के इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ.