कर त्रिशूल सोहत छवि भारी, करत सदा शत्रुन क्षयकारी
नंदी गणेश सोहें तहं कैसे, सागर मध्य कमल हैं जैसे
कार्तिक श्याम और गणराऊ, या छवि को कही जात न काऊ
देवन जबहीं जाय पुकारा, तबहीं दुःख प्रभु आप निवारा
किया उपद्रव तारक भारी, देवन सब मिलि तुम्हीं जुहारी
तुरत षडानन आप पठायऊ, लव निमेश महं मारि गिरायऊ
आप जालंधर असुर संहारा, सुयश तुम्हार विदित संसारा
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई, तबहीं कृपा कर लीन बचाई
किया तपहिं भागीरथ भारी, पूरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी
दानिन महँ तुम सम कोऊ नाहीं, सेवक अस्तुति करत सदाहीं
वेद नाम महिमा तुम गाई, अकथ अनादि भेद नहीं पाई
प्रकटे उदधि मंथन में ज्वाला, जरत सुरासुर भय विहाला
कीन्हा दया तहं करी सहाई, नीलकंठ तब नाम कहाई
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा, जीत के लंका विभीषण दीन्हा
सहस कमल में हो रहे धारी, कीन्ह परीक्षा तबहीं त्रिपुरारी
एक कमल प्रभु राखेऊ जोई, कमल नयन पूजन चहुँ सोई
कठिन भक्ति देखि प्रभु शंकर, भये प्रसन्न दिये इच्छित वर
जय जय जय अनंत अविनाशी, करत कृपा सबके घटवासी
दुष्ट सकल नित मोहि सतावैं, भ्रमत रहूँ मोहे चैन न आवें
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो, यह अवसर मोहि आन उबारो
लै त्रिशूल शत्रून को मारो, संकट से मोहिं आन उबारो
माता पिता भ्राता सब कोई, संकट में पूछत नहीं कोई
स्वामी एक है आस तुम्हारी, आय हरहु मम संकट भारी
धन निर्धन को देत सदाहिं, जो कोई जांचे सो फल पाहिं
अस्तुति केहि विधि करऊँ तुम्हारी, क्षमहु नाथ अब चूक हमारी
शंकर हो संकट के नाशन, मंगल कारण विघ्न विनाशन
योगी यति मुनि ध्यान लगावें, नारद शारदा शीश नवावैं
नमो नमो जय नमः शिवाय, सुर ब्रह्मादिक पार न पाय
जो यह पाठ करे मन लाइ, ता पर होत हैं शम्भू सहाई
ऋणीया जो कोई हो अधिकारी, पाठ करे सो पावन हारी
पुत्र होन की इच्छा जोई, निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई
पंडित त्रयोदशी को लावे, ध्यान पूर्वक होम करावे
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा, तन नहीं ताके रहै कलेशा
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे, शंकर सम्मुख पाठ सुनावे
जन्म जन्म के पाप नसावे, अंत वास शिवपुर में पावे
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी, जानि सकल दुःख हरहु हमारी
दोहा
नित्त नेम उठि प्रातः ही, पाठ करो चालीस,
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश